Motivational Hindi Story On “Stop Procrastinating”
किसी शहर में एक बहुत बड़ा व्यापारी रहता था जिसकी एक दुकान थी। उसके दो बेटे थे।
वह प्रतिदिन होने वाले व्यापार का पूरा हिसाब एक रजिस्टर में रोज लिख लेता था ताकि भविष्य में कोई समस्या न आये।
वह अपने दोनों बेटों को अपने व्यापार के बारे में रोज थोड़ा-बहुत बताता रहता था ताकि उसके बेटे व्यापार के बारे में अच्छी तरह सीख जाएँ।
व्यापारी रोज अपने दोनों बेटों को अपने व्यापार के बारे में सिखाता तो था लेकिन उसके बेटे कितना सीख पाए हैं, वह यह पता नहीं कर पा रहा था।
इसके लिए व्यापारी ने अपने दोनों बेटों की एक परीक्षा लेने के बारे में सोचा।
व्यापारी ने दोनों बेटों को अपने पास बुलाया और कहा, “मैं दुकान में रोज शाम को दो लकड़ी रख दिया करूँगा। तुम दोनों को रोज एक-एक लकड़ी खुद उठाकर घर लेकर जाना है।”
दोनों ने ऐसा करने को “हाँ” कह दिया।
अगले दिन शाम को दोनों ने दुकान में दो लकड़ियां रखी देखीं। पहले बेटे ने तो एक लकड़ी उठाई और घर चला गया।
लेकिन दूसरे ने सोचा कि कल फिर एक लकड़ी यहाँ रखी हुई मिलेगी तो कल ही दो लकड़ी एक साथ घर ले जाऊंगा। अतः दूसरा बेटा खाली हाथ ही घर चला गया।
अगले दिन फिर दो लकड़ी रख दी गयीं। आज भी पहला बेटा तो अपने हिस्से की एक लकड़ी को लेकर घर चला गया लेकिन दूसरे ने सोचा कि अभी मेरे हिस्से की दो लकड़ी ही तो हुईं हैं। ऐसा करता हूँ कि आज भी आराम से खाली हाथ घर चला जाता हूँ, जब कुछ और लकड़ियां इकट्ठी हो जाएँगी तब उन्हें एक साथ घर ले जाऊंगा।
अब तो रोज ऐसे ही होने लगा। रोज दोनों के लिए एक-एक लकड़ी रख दी जाती। पहला बेटा तो अपने हिस्से की लकड़ी को लेकर घर चला जाता लेकिन दूसरा बेटा यही सोचता कि कुछ और लकड़ियां इकट्ठी हो जाएँ तो एक साथ घर ले जाऊंगा।
एक दिन व्यापारी ने दोनों से कहा, “अब लकड़ी रखते हुए मुझे काफी दिन हो चुके हैं। मैं कल शाम को देखूंगा कि तुम दोनों रोज लकड़ियां घर ले जा पाए हो या नहीं, जिसने सभी लकड़ियां घर पर सही से रख दी होंगी, उसे मैं अपनी दुकान का मालिक बना दूंगा।”
अब अगले दिन पहला बेटा तो बहुत खुश था कि आज भी केवल उसे एक लकड़ी घर तक लेकर जानी है। उसने सोचा कि घर पहुंचकर वह सभी लकड़ियों को एक क्रम में सही से लगा देगा और अपने पिता को दिखा देगा। लेकिन दूसरा बेटा कुछ परेशान हो गया।
शाम हुई तो पहला बेटा तो अपने हिस्से की लकड़ी लेकर घर चला गया। दूसरे बेटे ने देखा कि लकड़ियों का तो बहुत बड़ा ढेर बन गया है। इतनी सारी लकड़ियों को वह एक साथ घर कैसे लेकर जायेगा। लेकिन उसने सोचा कि यदि वह ऐसा नहीं कर पाया तो वह दुकान का मालिक नहीं बन पाएगा।
अब उसने सभी लकड़ियों का एक बहुत बड़ा गट्ठर बनाया और उन्हें उठाकर दुकान से बाहर निकला।
लकड़ियों के बोझ से वह लड़खड़ा रहा था।
दो कदम और चलने पर वह पसीना-पसीना हो गया।
लेकिन दुकान का मालिक बनने के बारे में सोचकर वह दो कदम और आगे बढ़ा लेकिन इतनी लकड़ियों का वजन सहन न कर सकने के कारण वह वहीँ गिर गया और उन लकड़ियों के गट्ठर के नीचे दब गया।
तभी वह व्यापारी उसके पास आया और बोला, “मूर्ख! तुझे जो इतना सरल काम मैंने करने को दिया तो तू उसे भी नहीं कर पाया। अगर तू रोज के रोज एक लकड़ी को घर पहुंचाता रहता तो आज अपने भाई की तरह खुशी से मेरा घर पर इंतजार कर रहा होता। लेकिन रोज के इतने सरल काम को तूने आज इतना कठिन बना दिया कि उसी काम के बोझ के नीचे आज तू दबा हुआ है। मैंने जो तुम्हें सिखाया था, शायद तुमने सही से नहीं सीखा।”
अब उस व्यापारी ने घर जाकर अपने पहले बेटे को अपनी दुकान का मालिक बना दिया।
यह कहानी हमें क्या सिखाती है?
Moral Of This Hindi Story
दोस्तों! इस प्रेरणादायक हिंदी कहानी से हमें बहुत कुछ अच्छा सीखने को मिलता है।
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी (Life) में हम लोगों को रोज कुछ काम करने होते हैं। इनमे से कुछ कार्य (work) नए होते हैं तो कुछ कार्य पुराने होते हैं।
यदि हम आज करने वाले छोटे-छोटे कार्यों को कल करने के लिए टाल देते हैं और जब कल आता है तो परसों के लिए टाल देते हैं तो वही छोटे-छोटे कार्य जो आसानी से और बहुत जल्दी किये जा सकते थे, अब वह एक साथ इकट्ठे होने कारण बहुत बड़ा कार्य अर्थात कठिन कार्य (Hard work) बन जाते हैं, जिन्हें करना अब बहुत कठिन हो जाता है।
और जब अचानक जरुरत पड़ने पर हम उन कार्यों को एक साथ करने की सोचते हैं तो एक भी कार्य सही से नहीं हो पाता है और हम उन कार्यों के बोझ को नहीं संभाल पाते हैं। इससे हमारा आत्मविश्वास (self confidence) भी कम हो जाता है।
कहानी में भी व्यापारी के दूसरे बेटे ने इतने सरल काम को टालकर एक बहुत बड़ा काम बना लिया और अंत में वह उसे पूरा भी नहीं कर पाया।
दोस्तों! छोटे-छोटे कार्यों की ही तरह हमारे जीवन में रोज कुछ न कुछ problems भी आती रहती हैं। यदि रोज आई हुई समस्या का रोज निदान नहीं किया जाये तो समय बीतने पर यहीं छोटी-छोटी problems एक बहुत बड़ी समस्या बन जाती है जिसे solve करना बहुत Difficult हो जाता है।
अतः छोटे कार्यों को और छोटी समस्याओं को टालना बंद कीजिये (stop procrastinating of tiny work and problems)।
जिंदगी में आप दो तरीके से जीना सीख सकते हैं।
पहला, यदि आप जिंदगी में बहुत आराम से फिसलते हुए जीना चाहते हैं तो आपको अपने रोज के कार्यों को रोज ही करने की आदत (Habit) डालनी होगी और रोज की समस्याओं को रोज ही हल करना होगा।
दूसरा, यदि आप फिसलने की जगह घिसटकर जीना चाहते हैं तो आप व्यापारी के दूसरे बेटे की तरह जीना सीख लीजिए।
अब निर्णय (Decision) आपके हाथ में है कि आप जीवन का सफर आराम से फिसलकर पूरा करना चाहते है या घिसटकर पूरा करना चाहते हैं।
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Shii bat hai abse m bhi apne sabhi Kary Samy or kiya krunga
sir apka har ek article best one hota h thanks to generate self confidence in me 🙂
with kind regards,
Nishant
अच्छी कहानी है,
veri good sir…i like this story..
very nice post
Hahahaha so nice story. Or utna hi achha moral hai. Aisa aksar dekhne ko milta hai. Aksar hum log yahi galti karte hain. Kaam ko taal kar apne liye or bada bojh bana dete hain.
Bilkul sahi kaha aapne! ham log taalne ki hi galti karte hain….lekin ab ise sudharne ki jarurat hai….change this habit and be successful…….
आज का काम आज करने की प्रेरणा देती बढ़िया कहानी।
nice article amul ji
Bahut hi badhiya article hai..kaphi seekhne ko mila.
Dhanyavad Surendra ji…..manushya ki sabse buri aadaton me se ek aadat kaam ko taalne ki hoti hai…..
Bilkul sahi, kaam ko kabhi kal ke liye nhi talna cahiye
Dhanyavad Amit ji…..”AapkiSafalta” se jude rahen…….
Very nice